साहिबगंज: झारखंड में सरना धर्म कोड की मांग एक बार फिर से जोर पकड़ रही है, जो राज्य की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बनता जा रहा है। झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस इस मुद्दे पर सक्रिय हैं और इसे अपने चुनावी घोषणापत्र का भी हिस्सा बना चुके हैं। आदिवासियों के लिए सरना धर्म कोड लागू करने की मांग को लेकर मंगलवार को पूरे झारखंड प्रदेश के सभी जिलों में झामुमो जिला कमेटी के द्वारा धरना प्रदर्शन किया जा रहा है।

साहिबगंज जिले में भी एक आदिवासियों का एक बड़ा समूह समेत झारखंड मुक्ति मोर्चा के द्वारा जिला समाहरणालय के समझ धरना प्रदर्शन किया गया। धरना प्रदर्शन में हजारों झामुमो कार्यकर्ता समेत आदिवासी का बड़ा समूह शामिल हुआ। धरना प्रदर्शन का नेतृत्व झामुमो जिलाध्यक्ष अरुण सिंह ने किया। इस मौके पर राजमहल विधायक एमटी राजा, बोरियो विधायक धनंजय सोरेन, जिला परिषद अध्यक्षा मोनिका किस्कू, केंद्रित समिति सदस्य नजरुल इस्लाम, पूर्व जिलाध्यक शाहजहां अंसारी समेत सैकड़ों की संख्या में झामुमो नेता व कार्यकर्ता शामिल हुए।

धरना को संबोधित करते हुए कहा कि विधायकों ने कहा कि केंद्र सरकार को जाति जनगणना कराने से पहले सरना धर्म कोड और आदिवासी धर्म कोड लागू करना होगा। झारखंड के मूलवासियों का हक उनको देना होगा। बता दें कि यह मुद्दा न केवल आदिवासी समुदाय की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान से जुड़ा है, बल्कि यह एक बड़े वोट बैंक को प्रभावित करने वाला राजनीतिक हथियार भी बन गया है।

झारखंड की लगभग 27 प्रतिशत आबादी आदिवासियों की है, जो मुख्य रूप से खुद को सरना धर्म के तहत मानती है। यह प्रकृति पूजा पर आधारित है और इसे मानने वाले संताली, मुंडा, हो, और कुरुख समेत अन्य समुदाय पेड़, पहाड़, नदियों और जंगलों की पूजा करते हैं। वर्ष 2020 में झारखंड विधानसभा ने सर्वसम्मति से सरना आदिवासी धर्म कोड को जनगणना में शामिल करने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया था, जिसे केंद्र सरकार को मंजूरी के लिए भेजा गया।हालांकि, केंद्र द्वारा इस पर कोई ठोस निर्णय न लेने से यह मुद्दा और गर्म हो गया है और राज्य में सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व वाला गठबंधन इसे लेकर राजनीतिक तौर पर हावी है।